Jain Dharm ke Bare Mein Sampurn Jankari in Hindi
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Jain Dharm ke Bare Mein Sampurn Jankari in Hindi : जैन धर्म से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

Jain Dharm ke Bare Mein Sampurn Jankari in Hindi : जैसा कि आप सभी लोगों को यह मालूम होना चाहिए कि जैन धर्म अच्छा हुई शताब्दी में भारत के कुल 72 संप्रदायों का विकास हुआ जिसमें जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म इसके अलावा आजीवक संप्रदाय तथा कापालिक और साहब धर्म के वैष्णो धाम प्रमुख है।

Jain Dharm ke bare mein sampurn jankari

जैन धर्म संस्कृति के जिन शब्दों से लिया गया है जिसका अर्थ विजेता होता है जैन धर्म का मुख्य केंद्र अहिंसा था और इसके संस्थापक ऋषभदेव थे जैन धर्म के प्रवर्तक को तीर्थंकर कहा जाता है ऋषभदेव जैन धर्म के पहले तीर्थंकर थे तीर्थंकर का अर्थ होता है दुख से पारे संसार रूप संसार को पर करने वाला ऋषभ वेद हिमालय पर्वत पर निर्वाण को प्राप्त किए थे …

 

जैन धर्म के कुल 24 तीर्थंकर माने जाते हैं जिन्होंने समय पर जैन धर्म का प्रचार प्रसार किया जैन धर्म के तेज तीर्थंकर पारस थे इनका जन्म वाराणसी के राजा अशोक सेन के यहां हुआ था जो इसवा को वंश से संबंधित है झारखंड के सम्मेद शिखर पर ज्ञान की प्राप्ति हुई जिस कारण समीर शिखर का नाम पारस की छोटी हो गया

ज्ञान प्राप्ती के बाद इन्होंने चत्रायण धर्म दिया जो निम्नलिखित है-

(ⅰ) झूठ न बोलना। (Non Lying) = सत्य

(ii) धन संग्रह न करना। (Non Possession) = अपरिग्रह

(iii) चोरी न करना। Astey (Non Stealing) = अस्तंय

(iv) हिंसा न करना। (Non Injury) = अहिंसा

जैन धर्म के 24वें तिर्थकर एवं अंतिम तिर्थंकर महावीर स्वामी हैं। इन्हें जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक कहते हैं।

इनके पिता सिद्धार्थ थे, जो ज्ञातृक कुल के राजा थे।

इनकी माता त्रिशला थी। जो लिच्छिवी नरेश चेतक की बहून थी। इनके बड़े भाई नदीवर्मन थे। नदीवर्धन (जलू मदीर निर्माण)

इनके बचपन का नाम वधमान था।

इनका जन्म 540 ई.पू. वैशाली के निकट कुंडग्राम में हुआ था।

इनकी पत्नी यशोदा थी।

इनकी बेटी प्रियदर्शनी (अन्नोज्जा) थी तथा दामाद जमालि था।

30 वर्ष की आयु में इन्होंने अपने बड़े भाई नंदीवर्मन से आज्ञा लेकर गृह त्याग दिए।

 12 वर्ष के कठोर तपस्या के बाद जाम्भिक ग्राम में एक साल वृक्ष (बरगद) के नीचे ऋजुपालिका नदी के तट पर इन्हें ज्ञान की प्राप्ती हुई। ज्ञान प्राप्ती को “कैवल्य” कहते हैं।

ज्ञान प्राप्ती के बाद इन्हें कैवलीन, जीन या निग्रोथ कहा गया। जीन का अर्थ होता है, विजेता जबकि निग्रोथ का अर्थ होता है, बंधन से मुक्त।

वर्तमान में जाम्भिक ग्राम की पहचान हजारीबाग के समीप पारसनाथ की पहाड़ी तथा ऋजुपालिका नदी की पहचान दामोदर नदी की सहायक नदी बराकर नदी के रूप में किया जाता है।

इन्होंने पहला उपदेश राजगीर में बितुलाचल पहाड़ी पर बराकर नदी के तट पर प्राकृत (अर्द्धमगही) भाषा में दिया था। जबकि अंतिम उपदेश पावापुरी में दिया।

महावीर स्वामी का पहला भिक्षु उनका दमाद जमाली बना।

प्रथम जैन भिक्षुणी चम्पा थी। जो राजा दधीवाहन की बहन थी।

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